बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 इतिहास बीए सेमेस्टर-3 इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 इतिहास
प्रश्न- भारत के सामाजिक-धार्मिक पुनरुत्थान में स्वामी विवेकानन्द के योगदान का विवरण दीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. स्वामी विवेकानन्द पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
2. सामाजिक उत्थान में विवेकानन्द के योगदान का वर्णन कीजिए।
3. स्वामी विवेकानन्द के उपदेशों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर -
स्वामी विवेकानन्द (1863-1902 ई.)
स्वामी विवेकानन्द दक्षिणेश्वर के स्वामी रामकृष्ण परमहंस के प्रिय शिष्य थे। इन्होंने 1887 में रामकृष्ण मठ सम्बन्धी व्यवस्था एवं मिशन की विधिवत् स्थापना की। रामकृष्ण परमहंस के खास शिष्य नरेन्द्र नाथ दत्त, जो बाद में विवेकानन्द के रूप में प्रसिद्ध हुए, पर उनके मानवतावाद का गहरा प्रभाव पड़ा। रामकृष्ण परमहंस ने पाया कि विवेकानन्द ही उनके अमर सन्देश को चारों ओर प्रसारित कर सकते थे। 1886 में रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के बाद विवेकानन्द ने, जो उस समय 24 वर्ष के थे, अपने गुरु के सन्देश का प्रचार-प्रसार करने के लिए अपना जीवन समर्पित करने के लिए, सांसारिक जीवन का परित्याग कर दिया। देशभर में किए गए भ्रमण से उन्हें सामान्य जन के दुःखों एवं कष्टों का अनुभव हुआ जिसे दुखी होकर उन्होंने कहा कि, "मैं जिस प्रभु में विश्वास करता हूँ वह सभी आत्माओं का समुच्चय है और सर्वोपरि है। मेरा प्रभु पतितों, पीड़ितों और सभी प्रजातियों में निर्बलों का रक्षक-उद्धारक है।"
1893 में वे अमरीका गए तथा शिकागो में आयोजित विश्वधर्म सम्मेलन में भाग लिया। इस सन्दर्भ में न्यूयार्क हेराल्ड ने अपनी रपट में लिखा था, "उनको सुनने के बाद हम यह अनुभव करते हैं कि ऐसे ज्ञान सम्पन्न देश में अपने धर्म प्रचारक भेजना कितना मूर्खतापूर्ण है। अपने अमरीका प्रवास के दौरान स्वामी विवेकानन्द ने 'वेदान्त सभाएँ, स्थापित की, अनेक स्थानों पर व्याख्यान देते हुए बहुत से शिष्य बनाए। उनके अभिभाषणों का सार यह था कि, "पृथ्वी पर हिन्दू धर्म के समान कोई भी धर्म इतने उदात्त रूप में मानव की गरिमा का प्रतिपादन नहीं करता।' अमरीका में उन्होंने पूरे महाद्वीप का भ्रमण किया तत्पश्चात् इंग्लैण्ड, फ्राँस, स्विट्जरलैण्ड तथा जर्मनी की यात्रा की। विवेकानन्द पाश्चात्य श्रेष्ठता और अद्वितीय महिमा का निर्भ्रान्त प्रतिपादन करने वाले पहले भारतीय थे।
चार वर्ष के विदेश प्रवास के बाद विवेकानन्द भारत लौट आए तथा कलकत्ता के पास वेलूर में तथा अल्मोड़ा के पास मायावती में दो प्रमुख मठों की स्थापना की। यहाँ रामकृष्ण मिशन की सदस्यता ग्रहण करने वाले व्यक्तियों को मिशन के धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों के लिए प्रशिक्षित किया जाता था। रामकृष्ण मिशन के सन्यासी जन-जन के कष्टों के निवारण करने, रोगियों को चिकित्सा सुविधाएँ प्रदान करने और अनाथों की देखभाल करने के लिए सक्रिय समाज सेवा के प्रति पूर्ण समर्पित रहते थे। मिशन के तत्वावधान में विद्यालय खोले गए और लोकोपकारी केन्द्रों की स्थापना की गई।
विवेकानन्द के विचार
विवेकानन्द एक महान सन्त थे। उनका वेदान्त दर्शन में विश्वास था, जिसे उन्होंने दैनिक जीवन की समस्याओं के समाधान के लिए सक्षम बताया। उन्होंने जोर देकर कहा कि मोक्ष संन्यास से नहीं बल्कि मानव मात्र की सेवा से प्राप्त होता है। उन्होंने घोषणा की कि वे धर्म की चर्चा तभी करेंगे जब देश से गरीबी और दुखों का निवारण हो जाएगा। उनका अभिजात वर्ग की आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले सामाजिक आंदोलन में विश्वास नहीं था। उनका तर्क था कि शिक्षा सामाजिक बुराइयों को दूर करने का सबसे सशक्त माध्यम है, अतः औपचारिक सुधारवादी आन्दोलनों को चलाने की आवश्यकता नहीं है। उनका विश्वास था कि जनमानस के उत्थान से ही सुधारों को लाया जा सकता है, क्योंकि जनमानस में ही देश की शक्ति निहित है। उनके विचार में सभी प्राणी उस ईश्वर की ही सन्तान हैं तथा वे एक ही दैवी शक्ति के वाहक हैं।
(I) धर्म सम्बन्धी उनके विचार - गुरु रामकृष्ण परमहंस के चरण चिन्हों का अनुसरण करते. हुए विवेकानन्द सभी धर्मों की एकता और समानता में विश्वास करते थे, इसीलिए एक धर्म से दूसरे धर्म में तथाकथित धर्म-परिवर्तन का उनके विचारों में कोई स्थान नहीं था। वे प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म के सच्चे अनुयायी बनने का संदेश देते थे। उनके अनुसार इस्लाम धर्म ने अन्य किसी भी धर्म की तुलना में मानव एकता की वेदान्तिक अवधारणा को कहीं अधिक क्रियान्वित किया है। एक बार जो इस्लाम को अपना लेता है तो वह सामाजिक रूप से तुर्की के खलीफा के समान हो जाता है।
(II) धर्म का समाजीकरण - विवेकानन्द ने पहली बार इस दिशा में मठवासियों को मानव जाति के दुःख-दर्द को दूर करना ही उनका लक्ष्य बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। इस प्रकार उन्होंने लाखों गृहस्थों को यह अनुभव कराया कि उनके कर्त्तव्य मठवासियों से किसी प्रकार कम महत्वपूर्ण नहीं हैं। विवेकानन्द धार्मिक कर्मकाण्डवाद तथा पुरोहिताई निरंकुशता के प्रबल विरोधी थे। उनके मतानुसार हिन्दू धर्म रूढ़ कर्मकाण्डों की बेड़ियों में आबद्ध हो गया है, जिसका केन्द्र बिन्दु, जिसे उन्होंने बड़े तिरस्कारपूर्ण ढंग से व्यक्त किया था, "मुझे मत छुओ" अथवा रसोई धर्म था। उपनिषदों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा था, "कई शताब्दियों से हम अपनी पीठ पर अमृत का झरना लिए यात्रारत हैं किन्तु फिर भी हमने कभी इसका महत्व नहीं समझा और लोगों को धर्म के रूप में नाली का जल दिया"।
(III) आर्थिक विचार - विवेकानन्द के आर्थिक विचार नितान्त आधुनिक थे। वे पूँजीवादी उत्पादन संस्कृति के दोषों से पूरी तरह परिचित थे। सिस्टर निवेदिता के अनुसार, "वे बड़े पैमाने पर पूँजी प्रधान परियोजनाओं की तुलना में किसान मालिकों द्वारा छोटे पैमाने पर खेती करने एवं लघु कृषि आधारित उत्पादों पर आधारित उपायों के पक्षधर थे।
(IV) सार्वभौमवाद का सिद्धान्त - विवेकानन्द की सार्वभौमवाद की अवधारणा वस्तुतः विश्व के सभी राष्ट्रों की समानता और सब प्रकार की अन्ध देशभक्ति अथवा राष्ट्रों में पारस्परिक घृणा को समाप्त करने वाली विश्व व्यवस्था पर आधारित थी। उन्होंने इस तथ्य पर बार-बार बल दिया कि मानव जाति के समक्ष आने वाली अनेक समस्याएँ इतनी विकट होती हैं कि अब इनका समाधान राष्ट्रीय स्तर पर नहीं बल्कि अपेक्षाकृत बड़े सन्दर्भ में अन्तर्राष्ट्रीय आधार पर किया जा सकता है। उनका विश्वास था कि एक समय ऐसा अवश्य आएगा जब राष्ट्रों में परस्पर मतभेद नहीं होंगे, भारत का विकास विश्व से हटकर अकेले कभी नहीं हो सकता और यदि आवश्यक हो तो विश्वजनीयता के सिद्धान्त के लिए कुछ भी त्याग किया जा सकता है।
(V) भारतीय राष्ट्रवाद को योगदान - विवेकानन्द में देशभक्ति का प्रबलतम भाव था। उन्होंने युवकों को अपने देश की सेवा के लिए स्वयं को समर्पित करने के लिए प्रोत्साहित किया तथा भारत को विदेशी प्रभुत्व से मुक्ति दिलाने के लिए सर्वमान्य धार्मिक विरासत के आधार पर एक जुट होने का आह्वान किया। विवेकानन्द का उदीयमान भारतीय राष्ट्रवाद के विकास में महत्वपूर्ण योगदान था। उनकी राष्ट्रवादी विचारधारा के चार स्तम्भ थे जनमानस की जागृति, भौतिक एवं नैतिक शक्ति का विकास, समान आध्यात्मिक विचारों पर अवलम्बित एकता तथा भारत की प्राचीन गरिमा एवं गौरव के प्रति जागरूकता तथा स्वाभिमान। विवेकानन्द की अत्यधिक प्रतिभाशाली शिष्या बहन निवेदिता का भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में उल्लेखनीय स्थान है।
'इण्डियन अरैस्ट' के लेखक वेलेण्टाइन शिरोल ने विवेकानन्द के उपदेशों को राष्ट्रीय आंदोलन का एक प्रमुख कारण बताया। यह सही है कि विवेकानन्द ने सीधे तौर पर कभी भी ब्रिटिश नीतियों के विरोध में प्रचार नहीं किया लेकिन सुधार, एकता, जागरण और स्वतन्त्रता के प्रति उनके सभी प्रवचनों के परिणामस्वरूप ही राष्ट्रवाद की सशक्त भावना प्रवाहित हुई, इसीलिए अधिकांश मामलों में विवेकानन्द ठीक उसी प्रकार भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के आध्यात्मिक अग्रदूत थे जिस प्रकार रूसो और मैजिनी क्रमशः फ्राँसीसी क्रान्ति तथा इटली के एकीकरण के बौद्धिक गुरू रहे।
(vi) युवाशक्ति को आह्वान - विवेकानन्द भारतीय युवकों के लिए मसीहा थे। उन्होंने युवकों को प्रबोधित करते हुए कहा कि वे उठे और जागरूक हों और उन्हें चुनौतीं दी कि, "जब तक लाखों लोग भूखे और अज्ञानी रहेंगे तब तक मेरी दृष्टि में प्रत्येक वह व्यक्ति देशद्रोही है जो स्वयं शिक्षित होकर भी उनकी ओर थोड़ा सा भी ध्यान नहीं देता।" कमजोरी, आलस्य और कायरता से उन्हें अत्यधिक घृणा थी। उन्होंने भारतीय युवकों को निरन्तर उपदेश दिया और कहा, 'सर्वाधिक शक्तिशाली बनो, मनुष्योचित बनो और जो बात तुम्हें शारीरिक बौद्धिक तथा आध्यात्मिक रूप से कमजोर करती है उसे विष जानकर त्याग दो। उसमें कोई स्फूर्ति नहीं होती। सच्चाई शुद्ध होती है, सच्चाई ही सम्पूर्ण ज्ञान है तथा सत्य ही बल है।"
(vii) विवेकानन्द का मानववाद और नए भारत की कल्पना - विवेकानन्द पर उनके गुरु जी के विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा। उनके सामाजिक, धार्मिक तथा आध्यात्मिक विचारों की आत्मा मानवतावाद थी। अपनी पुस्तक "मैं समाजवादी हूँ" के माध्यम से विवेकानन्द ने भारत के उच्च वर्ग से अपने पद और सुविधाओं को त्याग करते हुए निम्नवर्ग के साथ हिलमिल जाने का आह्वान किया। उनके विचार से नए भारत का जन्म किसानों के हल, कुम्भकारों के अलाव, झोपड़ियों, जंगलों, किसानों तथा कामगार वर्गों के उत्थान से होगा। वह गरीबों तथा पददलित के लिए काम करने में विश्वास करते थे। वे कहते थे कि, "मैं उस ईश्वर में विश्वास नहीं करता जो मुझे इस जीवन में रोटी न दे सके और परलोक में जाने पर स्वर्गिक सुख की गारण्टी दे। मैं ऐसे धर्म या ईश्वर को नहीं मानता जो विधवाओं के आँसू न पोंछ सके या किसी अनाथ को एक टुकड़ा रोटी भी न दे सके। वेद, कुरान तथा अन्य सभी धर्मग्रन्थों को अब कुछ समय के लिए विश्राम करने दें।" दरिद्रनारायण की धारणा, जिसे बाद में महात्मा गाँधी द्वारा लोकप्रियता प्राप्त हुई के जन्मदाता विवेकानन्द ही थे।
विवेकानन्द जी ने एक शताब्दी पूर्व ही अनौपचारिक शिक्षा और साक्षरता अभियानों के आधुनिक पक्ष का अनुमान लगा लिया था। समाज के समस्त सम्भव साधन केवल प्राथमिक शिक्षा पर ही लगाने चाहिए, विश्वविद्यालय अथवा कॉलेज चलाने के लिए नहीं। उन्होंने कहा, "सती प्रथा उन्मूलन तथा विधवा पुनर्विवाह जैसे आवश्यक सभी सुधार कार्य उस समय तक सफल नहीं होंगे जब तक वे जनसंख्या के मात्र एक वर्ग तक ही सीमित रहेंगे।" विवेकानन्द ने महिलाओं के उद्धार के लिए सामाजिक आह्वान में कभी कोई कमी नहीं छोड़ी। इस सन्दर्भ में उन्होंने कहा था कि, “पाँच सौ समर्पित व्यक्तियों के साथ मुझे इस देश को सुधारने में पचास वर्ष लगेंगे लेकिन पचास समर्पित महिलाओं के सहयोग से मैं यह कार्य कुछ ही वर्षों में सम्पन्न कर सकता हूँ।" सुधार का उनका आदर्श स्त्रियों की दशा सुधारने, शिक्षा प्रणाली में आमूल परिवर्तन करने तथा जातिभेद को समाप्त करने पर आधारित था। उन्होंने पुरातन और नवीन के बीच समन्वय करने का प्रयास किया।
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- प्रश्न- भारत में डच शक्ति के आगमन को समझाते हुए डचों के पुर्तगालियों व अंग्रेजों से हुए संघर्षो पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- बंगाल के द्वैध शासन से आप क्या समझते हैं?
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- प्रश्न- भारत में डच शक्ति के उत्थान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
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- प्रश्न- प्लासी युद्ध के महत्व की विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- सिराजुद्दौला के विरुद्ध अंग्रेजों के मीर जाफर के साथ षड्यंत्र को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्लासी के युद्ध (सन् 1757 ई.) के परिणाम बताइये।
- प्रश्न- राबर्ट क्लाइव के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- बक्सर के युद्ध का महत्त्व बताइये।
- प्रश्न- बंगाल में द्वैध शासन का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- कालकोठरी की दुर्घटना क्या थी?
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- प्रश्न- वेलेजली के अधीन अंग्रेजी साम्राज्य के विस्तार एवं कंपनी के प्रदेश की सीमाओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
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- प्रश्न- वेलेजली की सहायक सन्धि की शर्तें क्या थीं?
- प्रश्न- वेलेजली के अवध के साथ सम्बन्ध पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- ब्रिटिश कम्पनी की भारत में आर्थिक एवं शैक्षिक नीति की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- लॉर्ड विलियम बेंटिक के प्रशासनिक एवं सामाजिक सुधारों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- लार्ड विलियम बैंटिक ने सती प्रथा तथा अन्य क्रूर प्रथाओं को बन्द करने की क्या नीति अपनाई? संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- विलियम बैंटिक के समाचार पत्रों के प्रति उदार नीति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- विलियम बैंटिक के द्वारा नैतिक तथा बौद्धिक विकास के लिए किये गये शैक्षणिक सुधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- बैंटिक के वित्तीय तथा न्यायिक सुधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- लार्ड विलियम बैंटिक के प्रशासनिक एवं न्यायिक सुधारों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- ब्रिटिश भारत में स्त्रियों की स्थिति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत पर ब्रिटिश शासन के सामाजिक प्रभाव का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
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- प्रश्न- 1833 के चार्टर एक्ट पर एक टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- लार्ड डलहौजी की 'हड़पनीति से आप क्या समझते हैं? इस नीति से ब्रिटिश साम्राज्यवाद को कैसे प्रोत्साहन मिला?
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- प्रश्न- लार्ड डलहौजी द्वारा विद्युत तार एवं डाक सुधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- लार्ड डलहौजी द्वारा रेलवे विभाग में क्या सुधार किये गये?
- प्रश्न- लार्ड डलहौजी के प्रशासनिक एवं सैनिक सुधारों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
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- प्रश्न- लार्ड डलहौजी को शिक्षा सम्बन्धी सुधारों में कहां तक सफलता प्राप्त हुई? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 1853 के चार्टर एक्ट पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- रणजीत सिंह का परिचय देते हुए अफगानों एवं अंग्रेजों के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- रणजीत सिंह का डोंगरों और नेपालियों से सम्बन्ध को संक्षिप्त में समझाइये |
- प्रश्न- रणजीत सिंह के प्रशासन के अंतर्गत भूमिकर एवं न्याय प्रशासन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- रणजीत सिंह ने सैनिक प्रशासन में कहाँ तक सफलता प्राप्त की? संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- हैदराबाद अकस्मात ही विघटनकारी शक्तियों का शिकार हो गया था, विवेचनात्मक उत्तर दीजिये।
- प्रश्न- 1724-1802 तक की हैदराबाद की राजनीतिक गतिविधियों का अवलोकन कीजिये।
- प्रश्न- टीपू की शासन प्रणाली का सविस्तार से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मैसूर राज्य का विस्तृत अध्ययन कीजिए।
- प्रश्न- एंग्लो-मैसूर युद्धों का समीक्षात्मक अध्ययन कीजिये।
- प्रश्न- टीपू सुल्तान और मैसूर पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- मैसूर व इतिहास लेखन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- 18वीं सदी में, मैसूर की स्थिति से संक्षिप्त रूप से परिचित कराइये।
- प्रश्न- 1399 ईस्वी से अठारहवीं सदी के मध्य मैसूर राज्य की स्थिति से अवगत कराइये।
- प्रश्न- स्थायी बंदोबस्त से क्या आशय है? लार्ड कार्नवालिस द्वारा स्थायी बंदोबस्त लागू करने के क्या कारण थे?
- प्रश्न- ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर भिन्न-भिन्न कर प्रणाली लगाने का क्या उद्देश्य रहा?
- प्रश्न- स्थायी बंदोबस्त ने किस प्रकार जमींदारी व्यवस्था को जन्म दिया?
- प्रश्न- भारतीय पुनर्जागरण के कारणों, परिणामों एवं विशिष्टताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 19वीं शताब्दी के प्रमुख सामाजिक-धार्मिक आन्दोलनों को बताइये।
- प्रश्न- क्या राजा राममोहन राय को 'आधुनिक भारत का पिता' कहना उचित है?
- प्रश्न- भारतीय सामाजिक तथा धार्मिक पुनर्जागरण में आर्य समाज की देनों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- ब्रह्म समाज के प्रमुख सिद्धान्तों व कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत के सामाजिक-धार्मिक पुनरुत्थान में स्वामी विवेकानन्द के योगदान का विवरण दीजिए।
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- प्रश्न- अहिंसा और सत्याग्रह पर गाँधी जी के विचारों का मूल्याँकन कीजिए।
- प्रश्न- रामकृष्ण परमहंस पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- अछूतोद्धार हेतु भीमराव अम्बेडकर के किए गये कार्यों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- आर्य समाज की मुख्य शिक्षाएँ व समाज सुधार में किए गए योगदान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- थियोसोफिकल सोसाइटी पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
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- प्रश्न- भारत में 19वीं सदी में हुए विभिन्न सुधारवादी आन्दोलनों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
- प्रश्न- अश्पृश्यता निवारण के लिए महात्मा गाँधी की सेवाओं का मूल्याँकन कीजिए।
- प्रश्न- 20वीं सदी में हुए प्रमुख सामाजिक सुधारों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- आधुनिक काल में जाति प्रथा पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
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- प्रश्न- नाविक विद्रोह 1946 का महत्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- स्वदेशी विचार के विकास का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- चैतन्य महाप्रभु पर एक टिप्पणी लिखिए।
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- प्रश्न- उन्नीसवीं सदीं में सामाजिक जागरण के क्या कारण थे?